Monday, June 10, 2013

मुक्तक : 250 - सीधी नहीं


सीधी नहीं मुझे प्रायः विपरीत दिशा भाये ॥
मैं चमगादड़ नहीं किन्तु सच अमा निशा भाये ॥
क्यों संतुष्ट तृप्त अपने परिवेश परिस्थिति से ?
मुझको कदाचित नीर मध्य मृगमार तृषा भाये ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...