क़ाबिज़ है अफ़रा-तफ़री का माहौल हर तरफ़ ,
जो भी टहल रहा था वो भगता
दिखाई दे ।।2।।
हैराँ हूँ डाकुओं के लुटेरों के गाँव में ,
हर कोई आज भीख ही मँगता
दिखाई दे ।।3।।
उस नाजनीं का मुझको रिझाने के वास्ते ,
अब भी दुपट्टा गिरता-सरकता
दिखाई दे ।।4।।
देता था जो वतन पे कभी अपनी जान को ,
शादी के बाद मौत से बचता
दिखाई दे ।।5।।
हर कोई है फिराक में कालिख को पोतने ,
कोई कहीं न प्यार को रँगता दिखाई दे ।।6।।
हर कोई है फिराक में कालिख को पोतने ,
कोई कहीं न प्यार को रँगता दिखाई दे ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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