Monday, June 3, 2013

93 : ग़ज़ल - कोई न काम-धाम



कोई न काम-धाम जो करता दिखाई दे ।।
हर शख़्स सिर्फ़ ख़्वाब ही तकता दिखाई दे ।।1।।
क़ाबिज़ है अफ़रा-तफ़री का माहौल हर तरफ़ ,
जो भी टहल रहा था वो भगता दिखाई दे ।।2।।
हैराँ हूँ डाकुओं के लुटेरों के गाँव में ,
हर कोई आज भीख ही मँगता दिखाई दे ।।3।।
उस नाजनीं का मुझको रिझाने के वास्ते ,
अब भी दुपट्टा गिरता-सरकता दिखाई दे ।।4।।
देता था जो वतन पे कभी अपनी जान को ,
शादी के बाद मौत से बचता दिखाई दे ।।5।।
हर कोई है फिराक में कालिख को पोतने ,
कोई कहीं न प्यार को रँगता दिखाई दे ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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