Tuesday, June 4, 2013

मुक्तक : 243 - जिसे मिलना न था


जिसे मिलना न था इक बार बारंबार पाता है ॥
जो फूटी आँख ना भाए मेरा दीदार पाता है ॥
करिश्मा उसकी क़िस्मत का मेरी तक़्दीर का धोख़ा ,
वो मेरा क़ाबिले नफ़रत मुझी से प्यार पाता है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

shishir kumar said...

Aaj-kal ki Muhabbat to ek khuli tizarat hai
haisiyat or Hushn dekh kar ab ishk kiyejatehain.
Nahi koe laila hai or nahi koe maznu hai,
ishk me diwanapan ye bat ab purani hai.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

वाह ! धन्यवाद ! shishir kumar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...