Saturday, June 22, 2013

मुक्तक : 253 - अरमान धराशायी


अर्मान धराशायी हो जाएँ चाहे सारे ॥
मझधार निगल जाये नैया सहित किनारे ॥
फंदा गले में अपने हाथों से न डालूँगा ,
तब तक जिऊँँगा जब तक ख़ुद मौत आ न मारे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...