Friday, June 7, 2013

मुक्तक 247 : पीतल के ही



पीतल के ही मिलते हैं बमुश्किल खरीददार ॥
इस शह्र में सोने की  मत लगा दुकान यार ॥
अब अस्ल का तो जैसे रहा ही न कामकाज ,
नकली का फूल फल रहा हर जगह कारबार ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...