Monday, June 10, 2013

मुक्तक : 251 - क्यों दूर की बुलंदी


क्यों दूर की बुलंदी दिखती खाई पास से ॥
क्यों क़हक़हों से बाँस सुबकते हैं घास से ॥
क्या यक-ब-यक हुआ कि तलबगार खुशी के ,
पाकर खुशी भी हो रहे उदास उदास से ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...