उस घर में
संसार भर में
दूसरा कोई
इससे अधिक
किन्तु विश्वसुंदर
अतुल्य फूल
नहीं खिला
किन्तु मैं आतुर हूँ
उसकी तुलना करने को
अतः
अनवरत सोच में पड़ा हूँ
कि किसकी उपमा दूँ उसे
चाँद , सूरज या अन्य कोई
और
और तभी आता है
रह रह के
मन में एक विचार
और बुद्धि करती है
मस्तिष्क को आदेश
यह सुनिश्चित करने का
कि वह
लगता है निःसन्देह
केवल और केवल
तथा सर्वथा
एवं सम्पूर्ण रूप से
तुम्हारे मुखड़े जैसा ।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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