Tuesday, August 4, 2015

मुक्तक : 741 - आफ़्ताब बनना है ॥


न पूछो मुझसे क्या मुझको जनाब बनना है ?
किसी से सह्ल नहीं सबसे साब बनना है ।।
हँसो न गर तो अभी अपनी आर्ज़ू कह दूँ ?
चराग़ हूँ मैं मुझे आफ़्ताब बनना है !!
सह्ल=सरल , साब=कठिन ,आर्ज़ू=मनोकामना,आफ़्ताब=सूर्य )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...