Sunday, August 9, 2015

मुक्तक : 746 - ग़ज़ालाचश्म




ठूँठ के , चढ़ती लता लेकर सहारे पूछ मत !!
अंध को करती ग़ज़ालाचश्म इशारे पूछ मत !!
जगमगाते दिन में भी दिलचस्प मंज़र कब मिले ?
स्याह रातों में जो देखे हैं नज़ारे पूछ मत !!
(ठूँठ=पत्रविहीन कटा-टूटा पेड़ ,लता=बेल ,अंध =नेत्रहीन ,ग़ज़ालाचश्म=मृगनयनी)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति



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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...