Saturday, August 15, 2015

मुक्तक : 750 - रो-रो पड़ता हूँ ॥



भीषण द्वेष-जलन निज मन पर ढो-ढो पड़ता हूँ ॥
घोर दुखी , अत्यंत उदास मैं हो-हो पड़ता हूँ ॥
कोई युगल विचरण करता जब यों ही विहँस पड़ता ,
अपने एकाकी होने पर रो-रो पड़ता हूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 


2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । सुशील कुमार जोशी जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...