Saturday, August 8, 2015

मुक्तक : 745 - दौड़ पड़ते हैं ॥




कभी हिरण से साथ-साथ दौड़ पड़ते हैं ॥
कभी नवीन अश्व जैसे हठ पे अड़ते हैं ॥
कभी-कभार कुत्ते-बिल्लियों से आपस में ,
दिलो-दिमाग़ ये मेरे झगड़ते-लड़ते हैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...