Wednesday, August 5, 2015

मुक्तक : 742 - आबोदाना ॥



[ चित्रांकन : डॉ. हीरालाल प्रजापति ] 
लिक्खा जहाँ पे होता क़िस्मत में आबोदाना ॥
ना चाह के भी सबको पड़ता वहाँ पे जाना ॥
मर्ज़ी का सबको मिलता कब रोज़गार याँ पे ?
भरने को पेट जैसा चाहें मिले न खाना ॥
(आबोदाना=रोज़ीरोटी,खाना=भोजन)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...