Thursday, August 6, 2015

मुक्तक : 743 - मेरा सच्चा ख़ैरख़्वाह


[ चित्रांकन : डॉ. हीरालाल प्रजापति ] 

मुझको कितनी बार गिर जाने पे तूने ही उठाया !!
ख़ुदकुशी करने से मरने से मुझे तूने बचाया !!
हर दफ्आ साबित हुआ तू मेरा सच्चा ख़ैरख़्वाह ,
फिर भी क्यों  ? 'अपना है तू 'इसका यकीं अब तक न आया  !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...