Saturday, August 29, 2015

मुक्तक : 759 - संदल बना दो तुम ॥




[ चित्रांकन :डॉ. हीरालाल प्रजापति ]

सुलगता मन-मरुस्थल इक हरा जंगल बना दो तुम ॥
नुकीली नागफणियाँ फूलते संदल बना दो तुम ॥
ठिठुरते-काँपते , नंगे-धड़ंगे मेरे जीवन का ,
तुम्हारा गर्म–ऊनी प्यार अब कंबल बना दो तुम ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...