इस बात से कौन मना कर सकता
है कि प्राणियों में मनुष्य मात्र अपनी जिज्ञासा के वशीभूत आवेष्ठित वस्तुओं को उघाड़-उघाड़
कर देखना चाहता है तिस पर वह वस्तु यदि प्रतिबंधित भी हो तब तो उसकी यह स्वाभाविक जिज्ञासा
अपने चरम पर पहुँच जाती है । इतिहास साक्षी है कि जिस किसी वस्तु को जितना अधिक प्रतिबंधित
किया गया वह उतनी ही अधिक मात्रा में कई गुना अधिक मूल्य चुकाकर उपभुक्त की गई किन्तु
इसका आशय यह कदापि नहीं कि उन वस्तुओं अथवा कार्यव्यापारों को स्वतंत्र कर दिया जाए
। प्रतिबंध तो अनिवार्य है । पोर्न साइटों पर प्रतिबंध समय की महती माँग है । जिन्हें
देखना है वे ऊँचा अथवा अनुचित मूल्य चुकाकर देखें तो देखते रहें । सहज सुलभ अथवा मुफ़्त
मिल जाने वाली वस्तुओं का लाभ उठाने का मोह त्यागना साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं
। यदि सरकार अथवा राजनैतिक पार्टियाँ सचमुच ही जनता का भला चाहती हैं तो इन अप्रतिबंधित
वस्तुओं के उत्पादन और उपयोग से होने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आर्थिक लाभों का
मोह त्यागना ही होगा । ग़लत बातें होती हैं और होती ही रहेंगीं किन्तु ग़लत कार्य करने
वालों के मन में एक भय तो व्याप्त किया ही जा सकता है कठोर नियम बनाकर । कम से कम सीधे-साधे लोग अथवा कच्ची उम्र के बच्चे तो दण्ड के भय से कुछ भी प्रतिबंधित कार्य करने से पूर्व
दस बार अवश्य ही सोचेंगे और उनमें से कई नहीं भी करेंगे और हमें ऐसे ही लोगों को तो
बिगड़ने से बचाना है और जिन्होने ठान ही ली है मिटने की कम से कम एक बार तो उन्हे भी चेताने
का कर्तव्य सरकारों का बनता ही है ।
- डॉ. हीरालाल प्रजापति
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