Friday, August 21, 2015

मुक्तक : 756 - तर-बतर आँखें ?





ढूँढती कुछ इधर-उधर आँखें ॥
लब सिले चीखतीं मगर आँखें ॥
किसको खोया कि एक पत्थर की ,
ख़ुश्क मौसम में तर-बतर आँखें ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति




1 comment:

Unknown said...

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...