Wednesday, May 27, 2015

मुक्तक : 720 - रीते पड़े यहाँ मन ॥


जाने कितनी ही भर्तियाँ होती हैं सन-दर-सन ?
भाँति-भाँति की रिक्तियों के होते विज्ञापन ।।
क्यों किसी का भी ध्यान जाता ही नहीं इस ओर ?
जाने कबसे तो , कितने ही रीते पड़े याँ मन ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...