Friday, May 22, 2015

मुक्तक : 716 - बिना पिए ही चढ़ी


बग़ैर ज़ीना बलंदी , गले लगा चूमी !!
गली हर एक चले बिन , ही जन्नती घूमी !!
वो आके बैठ गए क्या , ज़रा सा पहलू में ,
बिना पिए ही चढ़ी , ज़िंदगी नची-झूमी !!
( ज़ीना=सीढ़ी ,बलंदी=ऊँचाई ,जन्नती=स्वर्ग की ,पहलू=गोद )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...