Thursday, May 21, 2015

मुक्तक : 715 - पाँवों की ज़िद में ज़िंदगी


पिघली भी होके साँचे में ढाले नहीं ढली !!
लकड़ी यों तर-ब-तर थी कि जाले नहीं जली !!
आँखें थीं , नाक-कान थे थे हाथ भी मगर
पाँवों की ज़िद में ज़िंदगी चाले नहीं चली !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...