लगते हैं सबको अच्छे कैसे
हों ठाँव अपने ?
प्यारे , बुरे भी हों
तो ,लगते हैं गाँव अपने ।।1।।
मंज़िल अगर नहीं हो तो आज
ही बना लो ,
या आज ही कटाकर रख डालो पाँव
अपने ।।2।।
जबसे दिया है उसके हाथों
में हमने सूरज ,
तब से उसी के बस में हैं
धूप-छाँव अपने ।।3।।
कोयल को ही इजाज़त है याँ
पे बोलने की ,
चुपवाओ , करते कौए तुम काँव-काँव
अपने ।।4।।
जब जीतते नहीं तो क्यों खेलते
जुआ हो ?
क्या हारने लगाते हर बार
दाँव अपने ?5।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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