Wednesday, May 6, 2015

मुक्तक : 707 - बाज का भी बाप ॥


जिस्म से ले रूह तक की , की है हमने माप सच ॥
आदमी क्या हो बताएँगे हमें क्या आप सच ?
दिखने में गौरैया ,मैना ,फ़ाख़्ता ,बुलबुल  ,
अस्ल में है गिद्ध ,चील औ’ बाज़ का भी बाप ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...