Saturday, May 23, 2015

मुक्तक : 717 - कतरन ही तो माँगी थी


इक कतरन ही तो माँगी थी पूरा थान नहीं ।।
चाही थी बस एक कली सब पुष्पोद्यान नहीं ।।
पर तुम इक जीरा भी भूखे ऊँट को दे न सके ,
तुमसा कँगला हो सकता दूजा धनवान नहीं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...