Saturday, May 16, 2015

मुक्तक : 711 - जुगनू हज़ार दो ॥


टिम-टिम चिराग़ एक या जुगनूँ हज़ार दो ॥
हंसों सा दो प्रकाश कि पिक-अंधकार दो ॥
वाबस्ता जो नज़र से वो किस काम का मेरे ?
अंधा हूँ मैं मुझे क्या ? दो शब या नहार दो ॥
( वाबस्ता=सम्बद्ध  / नहार=प्रभात )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...