Wednesday, May 27, 2015

मुक्तक : 719 - आँच से अंगार


धैर्य - करि , बन मत्त दादुर-दल उछल बैठे ॥
स्निग्ध-पथ पर नोक-डग कल चल फिसल बैठे ॥
बिन छुए तुझको तेरी बस आँच से अंगार ,
कितने लोहे मोम-सदृश गल-पिघल बैठे ॥
( धैर्य-करि=संयम के हाथी,मत्त=मतवाला,दादुर-दल=मेंढक समूह,स्निग्ध-पथ=चिकनी राह ,नोक-डग=नुकीले क़दम )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...