Thursday, May 7, 2015

मुक्तक : 708 - बस मोहब्बत ही करूँ ॥


ना कहीं चुगली तेरी ना तो शिकायत ही करूँ ॥
मारना चाहूँ मगर पूरी हिफ़ाज़त ही करूँ ॥
क़ाबिले नफ़्रत है तू लेकिन कहूँ कैसे मेरी ,
बेबसी ऐसी है तुझको बस मोहब्बत ही करूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...