Thursday, May 14, 2015

मुक्तक : 709 - कैसा मैं परिंदा था ?



जाने कितनों में मैं अजीब औ' चुनिंदा था ?
उम्र भर फड़फड़ा घिसट-घिसट भी ज़िंदा था॥
तोड़ पिंजरा सका न चल सका न , उड़ पाया ;
पैर थे , पर थे , हाय ! कैसा मैं परिंदा था ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...