Monday, October 27, 2014

मुक्तक : 626 - मेरे लिए वो ख़ुद को


 मेरे लिए वो ख़ुद को तलबगार क्यों करे ?
नावों के होते तैर नदी पार क्यों करे ?
बिखरे हों इंतिख़ाब को जब फूल सामने ,
कोई भी हो पसंद भला ख़ार क्यों करे ?
[तलबगार =इच्छुक, इंतिख़ाब =चयन, ख़ार =काँटा ]
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...