Monday, October 6, 2014

मुक्तक : 609 - इक ज़रा लुत्फ़ो-मज़ा


इक ज़रा लुत्फ़ो-मज़ा जब हों न तारी ॥
हर तरफ़ तकलीफ़ो-ग़म हों भारी-भारी ॥
और यही आलम हो रहना उम्र भर तो ,
क्यों करूँ मैं ज़िंदगी की पासदारी ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...