Wednesday, October 29, 2014

अकविता : [ 1 ] यूज़


यह सोचकर कि वह सुखी रहेंगे 
प्रयत्न करते हैं
बहुत बड़ा बल्कि सबसे बड़ा आदमी बनाने का
हम अपने बच्चों को
किन्तु
फिर
यह पक्का पता चल जाने पर भी
कि उन्हे सचमुच ही बड़ा नहीं बनना है
अथवा वे इसी हाल में बहुत खुश हैं
और
इन्हीं सीमित सुख सुविधाओं में भी
जीवन को पूर्ण आनंद से बिता लेंगे
हम क्यों उनमें
बड़ा बनने की तृष्णा कूट-कूट कर भरते है ?
वे
जबकि पूर्व से ही
स्वयमेव संतोष को सबसे बड़ा सुख
मानते हैं
हम क्यों उन्हें
सिखाते हैं –
‘ संतोष प्रगति का रोड़ा है ’ ?
कहीं सचमुच यही तो सच नहीं कि
जो हम अपने जीवन में न कर सके
अपने बच्चों से वह करवाकर
अपने दहकते असंतोष को बुझाना चाहते हों ?
आई मीन
अपनी अतृप्त कामनाओं अथवा
अधूरे सपनों की पूर्ति के लिए
कहीं हम
अपने बच्चों को
कर तो नहीं रहे
‘’यूज़’’ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बृहस्पतिवार- 30/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 41
पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Darshan jangra जी !

Prabodh Kumar Govil said...

Achchhi jagah, aane ki khwahish rahegi!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Govil जी !

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