Monday, October 13, 2014

मुक्तक : 616 - न कोई अमीर-ऊमरा


कोई अमीर-ऊमरा न मुफ़्लिसो-ग़रीब ॥
फटका न पास का न कोई दूर का क़रीब ॥
पूरे बज़ार में मिला न इक ख़रीददार ,
बैठा जो मुफ़्त में भी अपना बेचने नसीब !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति  

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...