Saturday, October 4, 2014

मुक्तक : 606 – तुमको इक-दो बार


तुमको इक-दो बार मुझको तो मगर अक्सर लगे ॥
दुश्मनों की आड़ में यारों के कस-कस कर लगे ॥
सब भले सब अपने लगते , किसपे शक़-सुबहा करूँ ?
जाने किस-किस के वले छुप-छुप के सर पत्थर लगे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...