Sunday, October 26, 2014

मुक्तक : 625 - मुझको बेशक़ न


मुझको बेशक़ न नज़र आता था मेरा साहिल ॥
चाँद , तारों सी बड़ी दूर थी मेरी मंज़िल ॥
लुत्फ़ आता था उन्हे पाने तैर चलने में,
जब तक उम्मीद थी लगता था ज़िंदगी में दिल ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...