Sunday, July 5, 2015

मुक्तक : 724 - दो ग़ज़ ज़मीन


दो ग़ज़ ज़मीन अपने दफ़्न को क्या माँग ली ?
पैरों तले कि भी ज़मीन उसने खींच ली !!
मेरे ही हक़ को मार के वो शाह हो गया ,
मैं बेतरह पुकारता रहा अली-अली ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...