Tuesday, July 7, 2015

विचार : लड़की पैदा करना अनिवार्य है


          कल खुद पर केरोसीन  छिड़ककर अत्महत्या करने वाली एक निःसंतान महिला का मृत्युपूर्व बयान कि ''परिवार एवं मोहल्ले वाले उसे बांझ-बांझ कहकर चिढ़ाते थे जिससे तंग आकर उसे यह कदम उठाना पड़ा '' यदि सत्य है तो अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है कि क्यों अब भी हम '' बच्चा गोद लेने से कतराते है '' एवं वे लोग कठोरतम दंड के पात्र हैं जो ऐसी आत्महत्याओं के प्रेरक हैं । इसके अलावा मैं तो कहता हूँ कि जनसंख्या-विस्फोट के इस युग में जिनके बच्चे नहीं हैं उन्हे तो पुरस्कृत किया जाना चाहिए ! पुनश्च , आश्चर्यजनक किन्तु सत्य कि आज भी हमारे यहाँ  महिला-आत्महत्या का एक कारण यह भी रहा  है कि वे निःसंतान नहीं थीं  बल्कि यह कि वे कई बच्चियों की माँ थीं किन्तु एक लड़का पैदा नहीं कर सकीं !!!!!!!! आज भी लोग लड़कियों को लड़के की तुलना में हेय समझते हैं यह अत्यंत पक्षपातपूर्ण , अन्यायपूर्ण और हानिकारक है और यही आलम रहा तो एक दिन जब लिंगानुपात भयावह ढंग से बिगड़ जाएगा _धर्मग्रंथों में निश्चय ही यह लिखा जाएगा कि ''पितृ-ऋण से उऋण होने के लिए एक लड़की पैदा करना अनिवार्य है ।'' सरकार को इस भेदभाव को खत्म करने हेतु धर्मग्रंथों में ऐसी बात जुडवानी होगी क्योंकि हम बाहर से धर्मान्ध लोग धर्म के नाम पर सब कुछ करने पर तत्काल तैयार हो जाते हैं भले ही अंदर से नास्तिक अथवा धर्मविरुद्ध हों ।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज बृहस्रपतिवार (09-07-2015) को "माय चॉइस-सखी सी लगने लगी हो.." (चर्चा अंक-2031) (चर्चा अंक- 2031) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज बृहस्रपतिवार (09-07-2015) को "माय चॉइस-सखी सी लगने लगी हो.." (चर्चा अंक-2031) (चर्चा अंक- 2031) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज बृहस्रपतिवार (09-07-2015) को "माय चॉइस-सखी सी लगने लगी हो.." (चर्चा अंक-2031) (चर्चा अंक- 2031) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

कविता रावत said...

बिडम्बना है कि हमारे आस पास का समाज ही इन सबके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार रहता है .
कभी कभी बड़ा दुःख होता है की हम अभी भी किस युग में जी रहे हैं

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...