Sunday, July 26, 2015

मुक्तक : 736 - आँखें नहीं माँगूँ ?



मुझे लाज़िम नहीं इक शम्अ , हरगिज़ भी न इक जुगनूँ  ?
मैं अंधा हो के भी क्यों भीख में आँखें नहीं माँगूँ  ?
तो सुन - दिन-रात याँ रहती हुक़ूमत सिर्फ़ अँधेरों की ,
मना है देखने की बात भी करना न है मौजूँ  !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...