गाह चुपचाप कभी ढोल बजा आता है ॥
रोज़ ख़्वाबों में वो भरपूर सजा आता है ॥
मैं नहीं नींद का ख़ादिम हूँ मगर सच बोलूँ ,
उसके दीदार को सोने में मज़ा आता है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
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