Monday, July 27, 2015

मुक्तक : 737 - बरगद के झाड़ ॥



दुनिया के कैसे - कैसे झाड़ी - झंखाड़ ?
कहलाते शीशम-पीपल-बरगद के झाड़ ॥
करके दूबाकार कुछ इक बौनी रचनाएँ ,
विज्ञापन में उनको दिखला-दिखला ताड़ !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...