Saturday, July 18, 2015

मुक्तक : 731 - पलँग-खाट वाले ॥


भटकते फिरें राजसी-बाट वाले ॥
ज़मीं पर पड़े हैं पलँग-खाट वाले ॥
बना दी है वो वक़्त ने उनकी हालत ,
रहे अब न घर के न वो घाट वाले ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

2 comments:

कविता रावत said...

तभी तो राजसी ठाट बाट बना रहता है
सटीक

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । Kavita Rawat जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...