Wednesday, July 22, 2015

मुक्तक : 733 - उसका अर्मान था




उसका बेशक़ मैं कभी भी नहीं हबीब रहा ।।
उसके दिल ही के न घर के कभी क़रीब रहा ।।
उसका अर्मांं था मैं कातिब अमीर होता बड़ा ,
मेरी क़िस्मत ! मैं हमेशा ग़रीब-अदीब रहा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...