Wednesday, July 15, 2015

मुक्तक : 728 - भूल हमने क्यों यही की



बिन्दु को जिसने हज़ारों बार सिन्धु समझ लिया ;
सिन्धु को क्या सोच अनगिन बार बिन्दु समझ लिया ?
भूल हमने क्यों यही की बार-बार उसके लिए ,
ना समझना था समझदार उसको किन्तु समझ लिया ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...