कंगन नहीं मिला तो हमने चुरी पकड़ ली ॥
छूटा महानगर तो छोटी पुरी पकड़ ली ॥
कर-कर इलाज हारे पर रोग ना घटा जब ,
अपनी जगह से तिल भर दुःख-कष्ट ना घटा जब ,
औषधियाँ छोड़ हाथों में माधुरी पकड़ ली ॥
ईमानदारियों का पाया सिला बुरा जब ,
अच्छाइयों का बदला अक्सर मिला बुरा जब ,
हमने भी राह धीरे-धीरे बुरी पकड़ ली ॥
लिख-लिख के हमने देखा कुछ भी नहीं हुआ जब ,
हथियार भूलकर भी कोई नहीं छुआ जब ,
तजकर कलम करों में पैनी-छुरी पकड़ ली ॥
( चुरी=चूड़ी , पुरी=नगरी , माधुरी=शराब )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-07-2015) को "वक्त बचा है कम, कुछ बोल लेना चाहिए" (चर्चा अंक-2033) (चर्चा अंक- 2033) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत सुंदर !1
डायनामिक पर आपका स्वागत है !
सुन्दर कविता
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