Saturday, February 28, 2015

मुक्तक : 676 - आती हो बिन झझक क्यों ?


चुप-चाप नाँह कंगन-पायल बजा-बजा के ॥
आती हो बिन झझक क्यों आती नहीं लजा के ॥
क्या चाहती हो मुझसे क्यों बार-बार मेरे -
एकांत में स्वयं को लाती हो तुम सजा के ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-03-2015) को "बदलनी होगी सोच..." (चर्चा अंक-1905) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

कहकशां खान said...

बेहद उम्‍दा रचना।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! कहकशाँ खान जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...