Sunday, February 22, 2015

गीत (28) - आग को पानी कब तक कहलवाओगे ?


पथ में पाटल नहीं ॥ 
पग में चप्पल नहीं ॥ 
मुझको काँटों पे कब तक
यों दौड़ाओगे ?
चाहे जल न सके
पर जलाता रहा ।  
आग से आग जल में
लगाता रहा । 
तुमने जो-जो भी चाहा
वो करता रहा ।
मैं कुओं से मरुस्थल
को भरता रहा ।
यों मैं निर्बल नहीं ॥ 
पर कोई कल नहीं ॥ 
क्या न जीवित पे थोड़ा
तरस खाओगे ?
कंटकित हार को
पुष्पमाला कहा ।
तेरे कहने पे तम को
उजाला कहा ।
झूठ का बोझ अब मुझको
यों लग रहा 
जैसे हिरनी को चट करने
सिंह भग रहा ।
बूंद भर जल नहीं ॥ 
फिर भी मरुथल नहीं ॥ 
आग को पानी कब तक
कहलवाओगे ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

5 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर ...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

shashi purwar said...

bahut sundar navget hai gahare abhav ko vyakt karta hua sundar sarthak navgeet hardik badhai

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! shashi purwar जी !

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