ना बने तो मत बना पर और मत बिगाड़ तू ॥
मत फटे में और टाँग को अड़ा के फाड़ तू ॥
आड़ वाले काम आड़ यदि न मिल सके न कर ,
कुछ भी हो कभी न करना खोलकर किवाड़ तू ॥
बेचकर के घोड़े सो रही हैं भेड़-बकरियाँ ,
और थोड़ी देर मूक रह न सिंह दहाड़ तू ॥
मैंने मरुथलों में फ़सलें रस भरी उगाईं हैं ,
प्यास तू बुझाले चूस किन्तु मत उजाड़ तू ॥
अपनी भूल पे मैं लाज से गड़ा हूँ पहले ही ,
कर कृपा भरी सभा में मत पुनः लताड़ तू ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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