Monday, February 23, 2015

मुक्तक : 673 - सरे बज़्म मेरी बाहों में


सरे बज़्म मेरी बाहों में आकर के झूम ले
तनहाई में पकड़ के मेरा हाथ घूम ले
बेशक़ ! बशौक़ दे-दे तू फिर मौत की सज़ा ,
सिर्फ़ एक बार मुझको तहेदिल से चूम ले
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...