क्या ये चुप्पी-ख़ामोशी-सन्नाटे
बात में बदलेंगे
?
क्या ये मौत-क़यामत आख़िर
जीस्त-हयात में बदलेंगे
?
क्या मेरा फ़ौलाद-सब्र भी
बच पाएगा गलने से ?
क्या वह दिन आएगा जिस दिन
ये दिन रात में बदलेंगे
?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
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