अब न पथ में डाल बाधा ॥
ओखली में सिर न धरता ।
मूसलों से यदि मैं डरता ।
हो रहा है धीरे - धीरे ।
मेरा पूरा काम आधा ॥
उसको रटता हूँ मैं आकुल ।
मुझको वह दिन-रात व्याकुल ।
बन रहा मैं श्याम उसका –
हो रही वो मेरी राधा ॥
जो किसी तक आ सका ना ।
कोई जिसको पा सका ना ।
जाने कैसे ? किन्तु
मैंने –
सच असंभव देव साधा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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