माना है आज प्रेम - दिवस
तो मैं क्या करूँ ?
करता नहीं है कोई मुझसे
प्यार अभी तक ।
मैं भी नहीं किसी का
तलबगार अभी तक ।
ना मैं किसी का रास्ता
देखूँ नज़र बिछा –
ना है किसी को मेरा
इंतज़ार अभी तक ।
फिर किसलिए मनाऊँ जश्न
नाचता फिरूँ ?
ना आए उसका इंतज़ार
मेरी नज़र में ।
नादानी है इक तरफ़ा -
प्यार मेरी नज़र में ।
जिसका न अपना होना तय है
उसके वास्ते –
दिन – रात रहना
बेक़रार मेरी नज़र में ।
कोई मुझपे जब मरे न
मैं भी उसपे क्यों मरूँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
शुक्रिया 🙏
Post a Comment