Friday, February 6, 2015

मुक्तक : 669 - मुझमें क्या ख़ास है


मुझपे क़ुर्बान है सौ-सौ दफ़ा फ़िदाई है ॥
मुझ सरिस काग से हंसी को आश्नाई है ॥
मुझमें क्या ख़ास है मुझको नहीं पता लेकिन ,
सच है क़िस्मत तो करिश्माई मैंने पाई है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...