Saturday, February 21, 2015

मुक्तक : 672 - आँखों में मेरी अश्क़ का

आँखों में मेरी अश्क़ का दरिया भरा रहा ॥
ग़म का बग़ीचा दिल का हमेशा हरा रहा
चाहा तो ज़िंदगी को था हँसकर गुजारना ,
पर जब तलक जिया मैं मरा ही मरा रहा ॥
-डॉ हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...